की बात ही अलग थी। बेंच पे
बैठे, बातें करते-करते, न जाने
कब इतना करीब आ जाते।
फिर सामने से जब कोई आंटी,
शॉपिंग बैग लिए गुज़रती तब
अचानक फिर 'कंज़र्वेशन ऑफ़
मोमेंटम' की बातें करने लगते।
जब भूक लगती, तब सड़क पार
नेताजी सुभाष प्लेस चले जाते।
रोड पे गाड़ियां जितना सटक के
चलती, हम उतने ही दूर हो जाते।
शाम को जब आलिंगन वाली
विदाई लेते। तब सिर के ऊपर
से गुज़रती मेट्रो से भी डर जाते।
बैठे, बातें करते-करते, न जाने
कब इतना करीब आ जाते।
फिर सामने से जब कोई आंटी,
शॉपिंग बैग लिए गुज़रती तब
अचानक फिर 'कंज़र्वेशन ऑफ़
मोमेंटम' की बातें करने लगते।
जब भूक लगती, तब सड़क पार
नेताजी सुभाष प्लेस चले जाते।
रोड पे गाड़ियां जितना सटक के
चलती, हम उतने ही दूर हो जाते।
शाम को जब आलिंगन वाली
विदाई लेते। तब सिर के ऊपर
से गुज़रती मेट्रो से भी डर जाते।
(Theme: Love, Form: LaPrek)
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