दरख्त ए ख्वाब

“That corpse you planted last year in your garden,
Has it begun to sprout? Will it bloom this year?"
~T.S. Elliot, Wasteland 


वो जो अपने बगीचे में तुमने लाश बोई थी
अब वो उगने लगी है क्या ? वो इस साल खिलेगी ना?
क्या उसपे फूल आएंगे हमारी बीती मोहब्बत के ?
सुनो किस रंग के होंगे वो?
क्या होंगे वो सियह जैसे हमारी रात गुज़री थी
या होंगे वो सुरख जैसे हमारा खून बहा था
फक़त रखने उसे ज़िंदा जो रिश्ता मर ही गया था

क्या मंडराऎगीं तितलियाँ  उन ख्वाहिशों के फूलों पर?
 नोच कर सारी पंखुड़ियाँ तुम  फूलों को  तबाह  करना
लेके रोज़ नयी खाव्हीश मेरी तुम जड़ों पर ज़िबा करना
सुनो तुम उन  तितलियों  को यूँ  ना प्यासे रवानः करना

और जब वो ज़रा सा पौधा इक दरख्त बन जाए 
तो उसकी टेहनियों पर सहमे अधूरे कुछ ख्वाब उगेंगे 
मेरे हर ख़्वाब छू कर तुम ज़रा बस पाक कर देना 
दिलाकर उन को भरोसा तुम जलाकर राख कर देना 
फ़िर उसी क़बर की मिट्टी मे मिला कर साथ कर देना 

और जो बाक़ी पत्तों में मेरी कहीं जो रूह रह जाए 
उन्हें दरख्त पर बस तुम यूँ ही लटकते रहने देना 
उन्हें सूख सूख गिर जाने देना
उन्हें मुरझा मुरझा मर जाने देना। 












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