कल्पना का रक्त चूसते ये सभी परजीव न्यारे
स्वप्न के तन पर तीव्रता से फिर रहे हैं
हताशा के घनघोर बादल ये सभी सारे के सारे
मन के नभ पर वीरता से घिर रहे हैं
एक मनोरथ को झुकाने पुरज़ोर आँधी चल रही है
पर है अपर्ण की यह ज्वाला जो हृदय में जल रही है
[परजीव Parasite ; मनोरथ Will ; अपर्ण Dedication]
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